भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीमक / इला प्रसाद

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इला प्रसाद }} <poem> वक्त का दीमक मेरे अक्षरों को चा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वक्त का दीमक
मेरे अक्षरों को चाट जाए
इससे पहले ही
दिखला देनी होगी इन्हें
दोपहर की धूप।

सीख लें ये भी,
आँच में तपना।
वक्त की कसौटी पर चढ़कर,
खरा उतरना।
धूप में चमकना।
किसी के हिस्से का सूरज बन कर,
राह में,
रोशनी-सा बरसना।

वक्त का दीमक
मेरे अक्षरों को लगे
इससे पहले ही
मैं दिखला लाऊँगी इन्हें
सुबह की धूप।