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धूप की मिठाई / हरीश निगम
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धूप की मिठाई के दिन
कंबल के दिन, रजाई के दिन,
फिर आए धूप की
मिठाई के दिन!
मफलर की धाक जमी
चले गए छाते,
अब स्वेटर-कोट यहाँ
फिरते इतराते।
बूँदों का खेल खतम
कुहरे की बारी,
थर-थर-थर काँपने की
सबको बीमारी।
सिगड़ी के दिन,
सिंकाई के दिन,
फिर आए आग की
बड़ाई के दिन