भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँसू / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:56, 21 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहीं है वह विस्मृत संगीत
खो गयी है जिसकी झंकार,
यहीं सोते हैं वे उच्छवास
जहाँ रोता बीता संसार;

यहीं है प्राणों का इतिहास
यहीं बिखरे बसन्त का शेष,
नहीं जो अब आयेगा लौट
यही उसका अक्षय संदेश।

समाहित है अनन्त आह्वान
यही मेरे जीवन का सार,
अतिथि! क्या ले जाओगे साथ
मुग्ध मेरे आँसू दो चार?