भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मशवरे / कैफ़ी आज़मी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 12 नवम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: कैफ़ी आज़मी
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
पीरी:
ये आँधी ये तूफ़ान ये तेज़ धारे
कड़कते तमाशे गरजते नज़ारे
अंधेरी फ़ज़ा साँस लेता समन्दर
न हमराह मिशाल न गर्दूँ पे तारे
मुसाफ़िर ख़ड़ा रह अभी जी को मारे
शबाब:
उसी का है साहिल उसी के कगारे
तलातुम में फँसकर जो दो हाथ मारे
अंधेरी फ़ज़ा साँस लेता समन्दर
यूँ ही सर पटकते रहेंगे ये धारे
कहाँ तक चलेगा किनारे-किनारे
पीरी=बुढापा ; शबाब=यौवन ; फ़ज़ा=वातावरण ; मिशाल=मशाल ; गर्दूँ=आकाश ; साहिल=किनारा ; तलातुम=बाढ