तब रोक न पाया मैं आँसू!
जिसके पीछे पागल होकर
मैं दौड़ा अपने जीवन-भर,
जब मृगजल में परिवर्तित हो मुझपर मेरा अरमान हँसा!
तब रोक न पाया मैं आँसू!
जिसमें अपने प्राणों को भर
कर देना चाहा अजर-अमर,
जब विस्मृति के पीछे छिपकर मुझ पर वह मेरा गान हँसा!
तब रोक न पाया मैं आँसू!
मेरे पूजन-आराधन को,
मेरे संपूर्ण समर्पन को,
जब मेरी कमजोरी कहकर मेरा पूजित पाषाण हँसा!
तब रोक न पाया मैं आँसू!