भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ शिशु कविताएँ / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:42, 10 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> '''1. जाड़े में मन भाती …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1.

जाड़े में मन भाती धूप
हमको खूब सुहाती धूप
दरवाज़े तक आ जाती है
घर में क्यों नहीं आती धूप।

2.

बस्ता भारी
मन है भारी
कर दो बस्ता हल्का
मन हो जाये फुल्का।

3.

मेरी मैडम
मेरे सर जी
हमें पढाते
अपनी मरजी।

4.

सारे दिन क्यों पढ़ें पुस्तकें
हम भी खेलें कोई खेल
बोझा बस्ते का कम कर दो
घर-स्कूल बने हैं जेल।