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सिंघवा चमार का बेटा / रवीन्द्र दास

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सिंघवा चमार का बेटा - फकीरा,

एक-आध साल ही स्कूल जा पाया

कमाल का ढोलक बजाता।

सोलह-सत्रह के होने के साथ ही आने लगा था -

बुलावा दूर-दूर से।

लौटा करता कमाकर कई कई सौ ,

लेकिन न देता गरीब बाप को ,

खरीद लाता बाज़ार से

बिजली की तार और तरह-तरह के बल्ब .....

एक ही झोपडे में

बिजली के कई बल्ब लगाता,

और जल जाने पर ,

न जाने किस हसरत भरी निगाहों से

निहारता घंटो-घंटे ,

अपने घर की दमकती हुई रौशनी को।


गाँव में ही नहीं ,

पूरे इलाके में प्रसिद्ध था -

फकीरा के ढोलक और बिजली का मिथक

और प्रसिद्ध था -

उसका गाढा काला रंग

और लकदक सफ़ेद

बनियान और घुटने के ऊपर की धोती

अक्सर फटा हुआ , लेकिन साफ सफ़ेद।

गाँव में एक या दो बार होने वाले नाटकों में बसते थे उसके प्राण

कोई प्रलोभन ,

उस महीने नहीं भेज पाता था

बाहर उसे ।

तो भी , नाटक मण्डली से दूर

घर में बैठा ,

इतनी आकांक्षा कि कोई बुलाने आए -उसके घर।

कहता था हर बार ,

कि आने ही वाला था ।


यही है हमारा फकीरा ,

माँ - बाप उसके निकम्मेपण से

दुखी थे जरूर ,

फिर भी ,

फकीरा की मिथकीय प्रसिद्धि से

उतनी ही चमकती थी आँखे

उनकी भी

भले ही ,

घर की रोटी जुटाने में वह मदद नहीं करता था !