Last modified on 18 अक्टूबर 2009, at 14:53

निविड़-विपिन, पथ अराल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:53, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निविड़-विपिन, पथ अराल;
भरे हिंस्र जन्तु-व्याल।

मारे कर अन्धकार,
बढ़ता है अनिर्वार,
द्रुम-वितान, नहीं पार,
कैसा है जटिल जाल।

नहीं कहीं सुजलाशय,
सुस्थल, गृह, देवालय,
जगता है केवल भय,
केवल छाया विशाल।

अन्धकार के दृढ़ कर
बंधा जा रहा जर्जर,
तन उन्मीलन निःस्वर,
मन्द्र-चरण मरण-ताल।