भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रहता है अजब हाल मेरा उनके साथ / जाँ निसार अख़्तर
Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:28, 20 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर |संग्रह=घर-आँगन (रुबाइयाँ) / जाँ …)
रहता है अजब हाल मेरा उनके साथ
लड़ते हुए अपने से गुज़र जाती है रात
कहती हूँ इतना न सताओ मुझको
डरती हूँ कहीं मान न जायें मेरी बात