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हुए पार द्वार-द्वार / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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हुए पार द्वार-द्वार,
कहीं मिला नहीं तार।

विश्व के समाराधन
हंसे देखकर उस क्षण,
चेतन जनगण अचेत
समझे क्या जीत हार?

कांटों से विक्षत पद,
सभी लोग अवशम्बद,
सूख गया जैसे नद
सुफलभार सुजलधार।

केवल है जन्तु-कवल
गई तन्तु नवल-धवल,
छुटा छोर का सम्बल,
टूटा उर-सुघर हार।