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जब यह दीप थके तब आना / महादेवी वर्मा

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लेखिका: महादेवी वर्मा

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जब यह दीप थके तब आना
यह चंचल सपने भोले हैं,
दृगजल पर पाले मैंने मृदु,
पलकों पर तोले हैं
दे सौरभ से पंख इन्हें सब नयनों में पहुंचाना
साधें करुणा-अंक ढलीं हैं,
सान्ध्य गगन सी रंगमयी पर
पावस की सजला बदली हैं,
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना
यह उड़ते क्षण पुलक भरे हैं,
सुधि से सुरभित स्नेह-धुले,
ज्वाला के चुम्बन से निखरे हैं,
दे तारों के प्राण इन्हीं से सूने श्वास बसाना!

यह स्पंदन हैं अंक व्यथा के
चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की,
बिखरी विस्मृत क्षार-कथा के,
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख-लिख अजर बनाना
लौ ने वर्ती को जाना है,
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने
रज का अंचल पहचाना है,
चिर बन्धन में बांध इन्हें घुलने का वर दे जाना!