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जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का.. / श्रद्धा जैन

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जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का
रात देखा है, ताज फूलों का

उसकी खुश्बू , उसी की यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का

हुस्न के, नाज़ भी उठाता है
इश्क़ को, इहतियाज<ref>Need</ref> फूलों का

नफ़रतों को, मिटा हैं सकते गर
आग को दें, इलाज फूलों का

थक गये राग-ए-गम को गा-गा कर
साज़ छेड़ा है, आज फूलों का

हो न हिंदू, न हो कोई मुस्लिम
बस बने इक, समाज फूलों का

लाई “श्रद्धा” भी मोगरे की लड़ी
लौट आया, रिवाज फूलों का

शब्दार्थ
<references/>