भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीर अभिमन्यु की लपालप कृपान बक्र / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:32, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीर अभिमन्यु की लपालप कृपान बक्र,
सक्र-असनी लौं चक्रव्यूह माहिं चमकी।
कहै 'रतनाकर' न ढालनि पै खालनि पै,
झिलिम झपालनि पै क्यों कँ ठमकी॥

आई कंध पै तो बाँटि बंध प्रतिबंध सबै,
काटि काटि संधि लौं जनेवा ताकि तमकी।
सीस पै परी तौ कुंड काटि मुंड काटि फेरि,
रुंड के मुखंड कै धरा पै आनि धमकी॥