ननँद निनारी सासु माइके सिधारी ,
अहै रैन अँधियारी भारी सूझत न करु है ।
पीतम को गौन कविराज न सुहात भौन ,
दारुन बहत पौन लाग्यो मेघ झरु है ।
सँग ना सहेली बैस नवल अकेली ,
तन पर तलबेली महा लाग्यो मैन सरु है ।
भई अधरात मेरो जियरा डेरात ,
जागु जागु रे बटोही इहाँ चोरन को डरु है ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।