भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रश्न जब भी उछाले गए / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:26, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=समंदर ब्याहने आया नहीं है / …)
प्रश्न जब भी उछाले गए
दोष हम पर ही डाले गए
आलकल साँप बिल की जगह
आस्तीनों में पाले गए
सूर्य के डूबते साथ ही
बस्तियों से उजाले गए
एक शालीन- से व्यंग्य को
आपतो अन्यथा ले गए
पूछ काँधों की होने लगी
केश जब भी सम्हाले गए
बाद में लोग सिक्के बने
पहले साँचों में ढाले गए
आज भी संत संसार से
स्वर्ण की ओर टाले गए