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चितवौ जी मोरी ओर / मीराबाई

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रचना संदर्भरचनाकार:  मीराबाई
पुस्तक:  प्रकाशक:  
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं

मन के बड़े कठोर।

मेरे आसा चितनि तुम्हरी

और न दूजी ठौर।

तुमसे हमकूँ एक हो जी

हम-सी लाख करोर।।

कब की ठाड़ी अरज करत हूँ

अरज करत भै भोर।

मीरा के प्रभु हरि अबिनासी

देस्यूँ प्राण अकोर।।