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गमन / आग्नेय
Kavita Kosh से
फूल के बोझ से
टूटती नहीं है टहनी
फूल ही अलग कर दिया जाता है
टहनी से
उसी तरह टूटता है संसार
टूटता जाता है संसार--
मेरा और तुम्हारा
चमत्कार है या अत्याचार है
इस टूटते जाने में
सिर्फ़ जानता है
टहनी से अलग कर दिया गया
फूल