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अंकुर-2 / इब्बार रब्बी

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क्या से क्या हो रहा हूँ
छाल तड़क रही है
किल्ले फूट रहे हैं
बच्चों की हँसी में
मुस्करा रहा हूँ।
फूलों की पाँत में
गा रहा हूँ।

रचनाकाल :