भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितनी देर और / इला कुमार

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख जो
आकाश के आरपार निहारती है
सम्पूर्ण सृष्टि को

सत् का असत् और असत् का सत्
दोनों चुप हैं

मौन है वायु में निहित प्राण
समूची पृथ्वी अपने पगों से विरच
अदृष्ट दृष्ट वैश्नावर
यही कहीं डिसोल्व होता हुआ

कालखंड के बीच से झरता हुआ समय प्रवाह

अभी और कितनी देर

कितनी देर और?