भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समर्पण / मोहन सगोरिया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:14, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण ("समर्पण / मोहन सगोरिया" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
पाषाण शिला ज्यों धँसी
दूब में
बदली छाई
घिर आई
साँझ... गहराई
चूमा माथ
लगा ज्यों
झुक गया आकाश।