लब-तिश्नगाने-जामे-तसलीम हम हैं साक़ी
या बादा या हलाहल, जो हो सो वाह-वा है
समझे अगर तू इतना, ये ज़िन्दगी मरज़ है
हो दर्द जिस तरह का, फिर वो तुझे दवा है
लब-तिश्नगाने-जामे-तसलीम हम हैं साक़ी
या बादा या हलाहल, जो हो सो वाह-वा है
समझे अगर तू इतना, ये ज़िन्दगी मरज़ है
हो दर्द जिस तरह का, फिर वो तुझे दवा है