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वातायन / नये सुभाषित / रामधारी सिंह "दिनकर"

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निज वातायन से तुम्हें देखता मैं बेसुध,
जब-जब तुम रेलिंग पकड़ खड़ी हो जाती हो,
चाँदनी तुम्हारी खिड़की पर थिरकी फिरती,
तुम किसी और के सपने में मँडराती हो।