Last modified on 16 नवम्बर 2009, at 03:17

समय-3 / दुष्यन्त

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:17, 16 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त }} {{KKCatKavita}} <poem> गहरे होते हैं समय के घाव नही…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गहरे होते हैं
समय के घाव
नहीं मिटते डिटर्जेंट से

नहीं मिटते साबुन से
समय के घाव

होते हैं अनमिट
बेमाता के लेख की तरह।

 
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा