भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी न किसी बहाने की बातें / प्रदीप कान्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:17, 18 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप कान्त |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> किसी न किसी बह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी न किसी बहाने की बातें
ले देकर ज़माने की बातें

उसी मोड़ पर गिरे थे हम भी
जहाँ थी सम्भल जाने की बातें

रात अपनी गुज़ार दें ख़्वाबों में
सुबह फिर वही कमाने की बातें

समझें न समझें हमारी मर्ज़ी
बड़े हो, कहो सिखाने की बातें

मैं फ़रिश्ता नहीं न होंगी मुझसे
रोकर कभी भी हँसाने की बातें