ख़ुदकलामी / फ़राज़
ख़ुदकलामी<ref>आत्मालाप</ref>
देखे ही नहीं वो लबो-रुख़सार<ref>होंठ व गाल</ref> वो ग़ेसू<ref>केश</ref>
बस एक खनकती हुई आवाज़ का जादू
हैरान परेशाँ लिए फिरता है तू हर सू<ref>हर तरफ़</ref>
पाबंदे- तसव्वुर<ref>कल्पना में बँधने वाला</ref> नहीं वो जल्वा-ए-बेताब<ref>प्रदर्शन को अधीर</ref>
हो दूर तो जुगनू है क़रीब आए तो ख़ुशबू
लहराए तो शोला है छ्नक जाए तो घुँघरू
बाँधे हैं निगाहोँ ने सदाओं<ref>आवाज़ों</ref> के भी मंज़र<ref>दृश्य</ref>
वो क़हक़हे जैसी भरी बरसात में कू-कू
जैसे कोई क़ुमरी<ref>एक प्रसिद्ध श्वेत पक्षी </ref>सरे-शमशाद<ref>सर्व के पेड़ पर</ref> लबे-जू<ref>नदी किनारे</ref>
ऐ दिल तेरी बातों में कहाँ तक कोई आए
जज़्बात की दुनिया में कहाँ सोच के पहलू
कब आए है फ़ित्राक़<ref>वह रस्सी जो घोड़े की जीन में शिकार बाँधने के लिए लगाते हैं</ref>में वहशतज़दा आहू<ref>सहमा हुआ हिरण</ref>
माना कि वो लब<ref>होंठ</ref>होंगे शफ़क़-रंगो-शरर ख़ू<ref> आसमान की लाली के रंग तथा चिंगारी भरे रक्त</ref>
शायद कि वो आरिज़<ref>होंठ</ref>हों गुले-तर से भी ख़ुशरू<ref>रूपवान</ref>
दिलकश ही सही हल्क़-ए-ज़ुल्फ़ो-ख़मो-अबरू <ref>भवों तथा ज़ुल्फों के घेरे</ref>
पर किसको ख़बर किसका मुक़द्दर<ref>भाग्य</ref>है ये सब कुछ
ख़्वाबों की घटा दूर बरस जाएगी और तू
लौट आएगा लेकर फ़क़त<ref>केवल</ref> आहें फ़क़त आँसू