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ज़ख्म दिल का नहीं भरा शायद / संकल्प शर्मा
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जख़्म दिल का नहीं भरा शायद,
दर्द सा कुछ अभी उठा शायद।
कहते-कहते वो रुक गया ऐसे,
अजनबी मैं उसे लगा शायद।
उसने यूँ ही निगाहें बदली हैं,
सच उसे भी नहीं पता शायद।
कल वो मुझको करेगा याद ऐसे,
नाम था एक अजीब सा शायद।
बिन कहे साथ छोड़ कर जाना,
याद होगा वो वाकया शायद।
जब वो लौटेगा तब ही मानेंगे,
है कहीं ना कहीं ख़ुदा शायद।
साथ वो लम्हे ले गया सारे,
और एक लफ्ज़ रह गया शायद।