भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन-1 / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:19, 28 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुनव्वर राना |संग्रह=फिर कबीर / मुनव्वर राना }} {{KKCa…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
                          **
जो भी दौलत थी वो बच्चों के हवाले कर दी
जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं
                          **
जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ <ref>साफ़ ,चमकदार</ref>कपड़े थे मगर
धूल-मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा
                         **
भीख से तो भूख अच्छी गाँव को वापस चलो
शहर में रहने से ये बच्चा बुरा हो जाएगा
                         **
अगर इस्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिंदों के न होने से शजर<ref>पेड़, वृक्ष</ref>अच्छा नहीं लगता
                         **
धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है

                        **

शब्दार्थ
<references/>