भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पसीने का गाना / अरुण आदित्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:22, 29 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण आदित्य |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> खेत में बहता हूँ…)
खेत में बहता हूँ
चुपके से धरती के कान में कहता हूँ
हरा-भरा कर दो किसान का मन
फैक्ट्री में बहता हूँ
मशीन से कहता हूँ
पैदा करो थोड़ी सी हँसी-खुशी
पौरुष के माथे पर गर्व से चमकता हूँ
संगिनी समीरा के आंचल से कहता हूँ
मेहनत का मोती हूँ प्यार से सहेज लो
धूप से करियाये रूप पर दमकता हूँ
कवि की क़लम काग़ज़ से कहती है
देखो-देखो श्रम और सौंदर्य का अद्भुत बिम्ब