भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम बहेंगे / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:36, 1 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''हम बहेंगे''…)
हम बहेंगे
हम नहीं लड़ेंगे
पाप के विरुद्ध पुण्य की विजय
असत्य के विरुद्ध सत्य की विजय
साधने के लिए.
हम नहीं अड़ेंगे
पागल साँड ़सी बिफरती भीड़ के सन्मुख
बाढ़ होती नदी के सन्मुख
सुदिशा के लिए
.
हम बहेंगे
स्वप्न हो निद्राओं में
रक्त हो तुम्हारी शिराओं में
सुदीर्घ जीवट के लिए.