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सियहकार थे बासफ़ा हो गए हम / हसरत मोहानी
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सियहकार<ref >पापी</ref> थे बासफ़ा<ref >पवित्र</ref> हो गए हम
तेरे इश्क़ में क्या से क्या हो गए हम
न जाना कि शौक़ और भड़केगा मेरा
वो समझे कि उससे जुदा हो गए हम
उन्हें रंज अब क्यों हुआ? हम तो ख़ुश हैं
कि मरकर शहीदे-वफ़ा हो गए हम
तेरी फ़िक्र का मुब्तला<ref >फँसा हुआ</ref> हो गया दिल
मगर क़ैदे-ग़म से रिहा हो गए हम
शब्दार्थ
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तुफ़ैले-इश्क<ref >प्रेम का फल</ref> है 'हसरत' ये सब मेरे नज़दीक तेरे कमाल की शोहरत जो दूर-दूर हुई
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शब्दार्थ
<references/>