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समीरण, धीरे से बह जाओ / रामकुमार वर्मा

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समीरण, धीरे से बह जाओ।
मैं क्या हूँ, इन कलियों के
कानों में यह कह जाओ॥
वे विकसित होकर जग को
देंगी सुख सौरभ भार,
किरणें हिम-कण के भीतर
होंगी ज्योतित सुकुमार;
तृण तृण ले लेंगे उज्ज्वलता
का नूतन परिधान,
विहगों को होगा अपने
मधुमय कण्ठों का ज्ञान;
इस जीवन में साँस-रूप हो
कुछ क्षण को रह जाओ।
समीरण, धीरे से बह जाओ।