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मेघों का यह मण्डल अपार / रामकुमार वर्मा

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मेघों का यह मण्डल अपार
जिसमें पड़ कर तम एक बार ही
कर उठता है चीत्कार!!
ये काले काले भाग्य-अंक
नभ के जीवन में लिखे हाय!
यह अश्रु-बिन्दु-सी सरल बूँद भी
आज बनी है निराधार!!
यह पूर्व दिशा जो थी प्रकाश की--
जननी छविमय प्रभापूर्ण,
निज मृत शिशु पर रख नमित माथ
बिखराती घन-केशान्धकार!!