भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने जो क्षण जी लिया है.. / हिमांशु पाण्डेय
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 14 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय }} <poem> मैंने जो क्षण जी लिया है उ…)
मैंने जो क्षण जी लिया है
उसे पी लिया है ,
वही क्षण बार-बार पुकारते हैं मुझे
और एक असह्य प्रवृत्ति
जुड़ाव की
महसूस करता हूँ उर-अन्तर
क्षण जीता हूँ, उसे पीता हूँ
तो स्पष्टतः ही उर्ध्व गति है,
क्षण में रहकर
क्षण से पार जाने की जुगत -
पार जाने की चरितार्थता ।
पर ढलान पर जैसे पानी
दौड़ता है नीचे की ओर
मैं भी कहाँ ठहर पाता हूँ कहीं ?
वर्तमान का सुख-दुःख, माया-मोह.....
सबको देखता हूँ लुढ़कते हुए किसी ओर ......
आगत प्रेम मेरी प्रतीक्षा में है ।