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टूटती है सदी की ख़ामोशी / विनोद तिवारी
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टूट्ती है सदी की ख़ामोशी
फिर कोई इंक़लाब आएगा
मालियो! तुम लहू से सींचो तो
बाग़ पर फिर शबाब आएगा
सारा दुख लिख दिया भविष्यत को
मेरे ख़त का जवाब आएगा
आज गर तीरगी है किस्मत में
कल कोई आफ़ताब आएगा