भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो दीन-हीन, पीड़ित / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:47, 19 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो दीन-हीन, पीड़ित, निर्बल,
मैं हूँ उनका जीवन संबल!
जो मोह-छिन्न, जग से विभक्त,
वे मुझ में मिलें, बनें सशक्त!
जो अहंपूर्ण, वे अन्ध-कूप,
जो नम्र, उठे बन कीर्ति-स्तूप!
जो छिन्न-भिन्न, जल-कण असार,
जो मिले, बने सागर अपार,
जग नाम-रूपमय अन्धकार,
मैं चिर-प्रकाश, मैं मुक्ति-द्वार!

रचनाकाल: मई’१९३५