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तारों का नभ / सुमित्रानंदन पंत

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तारों का नभ! तारों का नभ!
सुन्दर, समृद्ध आदर्श सृष्टि!
जग के अनादि पथ-दर्शक वे,
मानव पर उनकी लगी दृष्टि!
वे देव-बाल भू को घेरे
भावी भव की कर रहे पुष्टि!
सेबों की कलियों-सा प्रभूत
वह भावी जग-जीवन-विकास!
मानव का विश्व-मिलन पवित्र,
चेतन आत्माओं का प्रकाश!
तारों का नभ! तारों का नभ!
अंकित अपूर्व आदर्श-सृष्टि!
शाश्वत शोभा का खिला अदन,
अब होने को है पुष्प-वृष्टि!
चाँदनी चेतना की अमन्द
अग-जग को छू दे रही तुष्टि!

रचनाकाल: अक्टूबर’१९३५