भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल्ली में / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:06, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…)
कारों की रेस में
शामिल बैलगाड़ियाँ
ख़ुश है घोड़ागाड़ियों को देख कर
सभ्यता का विकास बरकरार है यहाँ
सर के ऊपर से गुज़रते हवाई जहाजों के
बावजूद।
चेहरे या तो बेरंग है
या फिर बदले हुए
मुलाक़ातें मुलाक़ातों की तरह नहीं है
प्रेमिकाएँ तक झूठ बोलती है यहाँ
दोस्त कहे जाने वाले लोग भी।
प्यार और दोस्ती के लिए
झूठ जरूरी है दिल्ली में
जमुना के बे-सेहत पानी की तरह