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बाँधो, छबि के नव बन्धन / सुमित्रानंदन पंत

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बाँधो, छबि के नव बन्धन बाँधो!
नव नव आशाकांक्षाओं में
तन-मन-जीवन बाँधो!
छबि के नव--
भाव रूप में, गीत स्वरों में,
गंध कुसुम में, स्मित अधरों में,
जीवन की तमिस्र-वेणी में
निज प्रकाश-कण बाँधो!
छबि के नव--
सुख से दुख औ’ प्रलय से सृजन
चिर आत्मा से अस्थिर रज-तन,
महामरण को जग-जीवन का
दे आलिंगन बाँधो!
छबि के नव--
बाँधो जलनिधि लघु जल-कण में,
महाकाल को कवलित क्षण में,
फिर-फिर अपनेपन को मुझमें
चिर जीवन-धन! बाँधो!
छबि के नव--

रचनाकाल: जुलाई’१९३४