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खोलो, मुख से घूँघट / सुमित्रानंदन पंत

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खोलो, मुख से घूँघट खोलो,
हे चिर अवगुंठनमयि, बोलो!
क्या तुम केवल चिर-अवगुंठन,
अथवा भीतर जीवन-कम्पन?


रचनाकाल: अप्रैल’१९३५