भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बैठी होगी संज्ञा / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:39, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण ("बैठी होगी संज्ञा / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाय का वक़्त है यह
यह नाश्ते का
यह दोपहर के खाने का वक़्त है
रात के खाने का वक़्त है यह....

अपने कमरे में बैठी होगी संज्ञा
अपनी दुनिया में खोई

अपनी किताबों के साथ
सोचती हुई अपने बारे में....

मेरे बारे में सोचती हुई
सोचती हुई उस हर आदमी के बारे में
उसके बारे में सोचता है जो।


रचनाकाल : 1992, विदिशा