भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उजाले के पक्ष में / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण ("उजाले के पक्ष में / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
अन्धेरा मन के भीतर था
उजाले की राह रोक कर खड़ा
अन्धेरे के खिलाफ़
क्या कर सकता था मैं
ख़ुद को जला देने के अलावा?
उजाला हतवाक
कि एक इन्सान जल रहा था
उसके पक्ष में खड़ा-खड़ा।
एक कवि
लिख रहा था
इस समूचे घटना-क्रम को
अपनी कविता में
इस तरह।
रचनाकाल : 1991, विदिशा