भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़र मिला न सके उससे / कृष्ण बिहारी 'नूर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 20 दिसम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेखक: कृष्ण बिहारी 'नूर'

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद ।

वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ।।


मैं कैसे और किस सिम्त मोड़ता ख़ुद को,

किसी की चाह न थी दिल में, तिरी चाह के बाद ।


ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें,

वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद ।


कहीं हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की,

छुपात सर मैं कहाँ तुम से रस्म-ओ-राह के बाद ।


गवाह चाह रहे थे, वो मिरी बेगुनाही का,

जुबाँ से कह न सका कुछ, ‘ख़ुदा गवाह’ के बाद ।