भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुर्ते की जेबें खाली हैं, औ' फटा हुआ है पाजामा / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
कुर्ते की जेबें खाली हैं, औ’ फटा हुआ है पाजामा
इनको न भिखारी समझो तुम, ये करने निकले हंगामा

धक्के-मुक्के, गाली-गुस्सा, खा-पीकर इतने बड़े हुए
फुसला न सकोगे इनको तुम, दिखला करके चंदामामा

दिल्ली वाले बाजीगर जी! अब जाग उठा है शेषनाग
भागो, छोड़ो यह बीन-शीन, यह टोपी-बालों का ड्रामा