टकराता ही रहता है वह पेड़,
दीवारों से,
मकान की ।
लिए हुए हरापन, परत धूल की,
बूंदें बारिश की । किरणें, चाँदनी ।
और हवा
जो दिखती है सबसे
पहले उस पर । टिकती हैं आँखें
दुखी-सुखी ।
देखो, देखो
पेड़ की रगों में भी बह रही
है वह कथा
जो इस वक़्त
तुम रहे हो सोच ।