भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीने वाले कज़ा से डरते हैं / शकील बँदायूनी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:05, 22 दिसम्बर 2006 का अवतरण
रचनाकार: शकील बँदायूनी
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
ज़हर पीकर दवा से डरते हैं
ज़ाहिदों को किसी का ख़ौफ़ नहीं
सिर्फ़ काली घटा से डरते हैं
आह जो कुछ कहे हमें मंज़ूर
नेक बंदे ख़ुदा से डरते हैं
दुश्मनों के सितम का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
अज़्म-ओ-हिम्मत के बावजूद "शकील"
इश्क़ की इब्तदा से डरते हैं