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सार्थकता / शलभ श्रीराम सिंह
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बिना कहे कहा है जो कुछ तुमने
उसका एक भी हिस्सा अगर बचा रहा मेरे पास
मेरे शब्दों के अर्थ नित नए होते रहेंगे
शब्दों के नए अर्थ
किसी के दिए हुए मौन से उपजते हैं
उपजता है उसी से वाणी का वर्चस्व
वाणी का वर्चस्व यह मेरा
कि शब्दों के नए अर्थ
तुम्हारे लिए प्रार्थना में ढलें
मेरा निवेदन तुम तक पहुँचे
पहुँचता रहे मेरे बाद ...
इसी में है इसकी सार्थकता।
फूल हों कि शब्द
उनकी सार्थकता निवेदित होने में है।
रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा