भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कटती रही रात / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 4 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…)
बार-बार तुम पर आया क्रोध
बार-बार आया प्यार तुम पर
नहीं आई तो केवल नींद
क्रोध और प्यार की रस्साकशी में
कटती चली गयी रात
हजार-हजार टुकड़ों में
टुकड़ों में लाख-लाख
कटती रही रात
आता रहा तुम पर क्रोध
प्यार आता रहा तुम पर बार-बार
रचनाकाल : 1992 अयोध्या