भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक जान दुख इतने सारे / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:13, 4 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद तिवारी |संग्रह=दर्द बस्ती का / विनोद तिवार…)
एक जान दुख इतने सारे
ओ बचपन फिर से आ जा रे
दूर-दूर तक सन्नाटा है
तनहा पंछी किसे पुकारे
अनजाने सुख की आशा में
नगर-नगर भटके बंजारे
किसे पता है इस बस्ती में
कब आ जाएँगे हत्यारे
क्षमताओं के नन्हें बाज़ू
इच्छाएँ हैं चाँद सितारे