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दिल मेरा सोज़े-निहां से बेमहाबा जल गया / ग़ालिब

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लेखक: गा़लिब

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दिल मेरा सोज़-ए-निहाँ से बेमुहाबा जल गया
आतिश-ए-ख़ामोश के मानिन्द गोया जल गया

दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल-ओ-याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया

मैं अदम से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल! बारहा
मेरी आह-ए-आतशीं से बाल-ए-अन्क़ा जल गया

अर्ज़ कीजे जौहर-ए-अन्देशा की गर्मी कहाँ
कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सेहरा जल गया

दिल नहीं, तुझ को दिखाता वरना दाग़ों की बहार
इस चराग़ाँ का, करूँ क्या, कारफ़र्मा जल गया

मैं हूँ और अफ़्सुर्दगी की आरज़ू "ग़ालिब" के दिल
देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहले-दुनिया जल गया