भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केवल तुम / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:41, 5 जनवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमसे अनुमति लेकर चला जाऊंगा एक दिन
कभी न ख़त्म होने वाली उस यात्रा पर
जीवन के पहले दिन हो गई थी जिसकी शुरुआत

अब तक धूप की तरह मिले थे कुछ लोग
कुछ लोग छाँव की तरह
ठंडक बनकर मिले थे कुछ लोग
कुछ लोग गर्मी

घाव की तरह मिलने वाले भी कम नहीं थे
कम नहीं थे मरहम की तरह मिलने वाले
अपनी तरह मिलीं केवल तुम

अपनी तरह मिलने वालों से
अनुमति लेकर जाना होता है उस यात्रा पर
जीवन के पहले दिन होती है जिसकी शुरुआत


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा